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IGNOU MHD-14 - Hindi Upanyas-1 (Premchand Ka Vishesh Addhyan)

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Rating: 3.7

हिंदी उपन्यास-1 (प्रेमचंद का विशेष अध्ययन)

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IGNOU MHD-14 Code Details

  • University IGNOU (Indira Gandhi National Open University)
  • Title हिंदी उपन्यास-1 (प्रेमचंद का विशेष अध्ययन)
  • Language(s) Hindi
  • Code MHD-14
  • Subject Hindi
  • Degree(s) MA
  • Course Optional Courses

IGNOU MHD-14 Hindi Topics Covered

Block 1 - प्रेमचन्द: व्यक्तित्व एवं कृतित्व

  • Unit 1 - प्रेमचंद का व्यक्तित्व एवं जीवन दृष्टि
  • Unit 2 - प्रेमचंद का साहित्य
  • Unit 3 - प्रेमचंद की साहित्यिक मान्यताएँ
  • Unit 4 - प्रेमचंद के उपन्यास और हिंदी उपन्यास

Block 2 - सेवासदन

  • Unit 1 - 'सेवासदन': अन्तर्वस्तु का विश्लेषण
  • Unit 2 - सेवासदन: शिल्प-संरचना (औपन्यासिक शिल्प)
  • Unit 3 - सेवासदन की नायिका (सुमन)

Block 3 - प्रेमाश्रम

  • Unit 1 - प्रेमाश्रम और कृषि-समस्या
  • Unit 2 - प्रेमाश्रमयुगीन भारतीय समाज और प्रेमचंद का आदर्शवाद
  • Unit 3 - 'प्रेमाश्रम' का औपन्यासिक शिल्प
  • Unit 4 - ज्ञानशंकर का चरित्र

Block 4 - रंगभूमि

  • Unit 1 - 'रंगभूमि' और औद्योगिकिकरण की समस्या
  • Unit 2 - 'रंगभूमि' पर स्वाधीनता आंदोलन और गाँधीवाद का प्रभाव
  • Unit 3 - 'रंगभूमि' का औपन्यासिक शिल्प
  • Unit 4 - सूरदास का चरित्र

Block 5 - गबन

  • Unit 1 - 'गबन' और राष्ट्रीय आंदोलन
  • Unit 2 - 'गबन' और मध्यवर्गी समाज
  • Unit 3 - 'गबन'' का औपन्यासिक शिल्प
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IGNOU MHD-14 (July 2023 - January 2024) Assignment Questions

1. निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए: (क) मेरे सिर कलंक का टीका लग गया और वह अब धोने से नहीं धुल सकता। मैं उसको या किसी को दोष क्यों दूं? यह सब मेरे कर्मों का फल है। आह! एड़ी में कैसी पीड़ा हो रही है; यह कांटा कैसे निकलेगा? भीतर उसका एक टुकड़ा टूट गया है। कैसा टपक रहा है। नहीं मैं किसी को दोष नहीं दे सकती। बुरे कर्म तो मैंने किए हैं, उनका फल कौन भोगेगा। विलास-लालसा ने मेरी यह दुर्गति की। मैं कैसी अंधी हो गई थी, केवल इन्द्रियों के सुख भोग के लिए अपनी आत्मा का नाश कर बैठी! मुझे कष्ट अवश्य था । मैं गहने-कपड़े को तरसती थी, अच्छे भोजन को तरसती थी, प्रेम को तरसती थी। (ख) तुम्हें क्या मालूम है कि जिसके लिए तुम सत्यासत्य में विवेक नहीं करते, पुण्य और पाप को समान समझते हो, वह उस शुभ मुहूर्त तक सभी विघ्न-बाधाओं से सुरक्षित रहेगा? सम्भव है ठीक उस समय जब जायदाद पर उसका नाम चढ़ाया जा रहा हो एक फुन्सी उसका तमाम कर दे। यह न समझो कि मैं तुम्हारा बुरा चेत रहा हूँ। तुम्हें आशाओं की असारता का केवल एक स्वरूप दिखाना चाहता हू। मैंने तकदीर की कितनी ही लीलाएँ देखी हैं और स्वयं उसका सताया हुआ हूँ । (ग) तुम खेल में निपुण हो, हम अनाड़ी हैं। बस इतना ही फरक है। तालियाँ क्यों बजाते हो, यह जीतने वालों का धरम नहीं ? तुम्हारा धरम तो है हमारी पीठ ठोकना। हम हारे, तो क्या, मैदान से भागे तो नहीं, रोये तो नहीं, धाँधली तो नहीं की। फिर खेलेंगे, ज़रा दम ले लेने दो, हार-हार कर तुम्हीं से खेलना सीखेंगे और एक-न-एक दिन हमारी जीत होगी, जरूर होगी। (घ) मानव-जीवन की सबसे महान घटना कितनी शांती के साथ घटित हो जाती है। यह विश्व का एक महान् अंग, वह महत्त्वाकांक्षाओं का प्रचंड सागर, वह उद्योग का अनंत भांडार, वह प्रेम और द्वेष, सुख और दुःख का लीला - क्षेत्र, वह बुद्धि और बल की रंगभूमि न जाने कब और कहाँ लीन हो जाती है, किसी को खबर नहीं होती। 2. 'प्रेमचंद' पर उनकी समकालीन आलोचना का विवरण प्रस्तुत करते हुए उसका मूल्यांकन कीजिए। 3. सुमन के चरित्र की मूलभूत विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए । 4. 'रंगभूमि' में आदर्शवाद किस रूप में व्यक्त हुआ है ? विचार कीजिए । 5. औपन्यासिक शिल्प की दृष्टि से 'गबन का मूल्यांकन कीजिए। 6. निम्नलिखित विषयों पर टिप्पणी लिखिए: (क) प्रेमशंकर का चरित्र (ख) 'सेवासदन' की अंतर्वस्तु (ग) गबन पर नवजागकरण का प्रभाव (घ) प्रेमचंद के उपन्यास संबंधी विचार

IGNOU MHD-14 (July 2022 - January 2023) Assignment Questions

1. निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए: (क). अब तक उमानाथ ने सुमन के आत्मपतन की बात जाह्नवी से छिपायी थी। वह जानते थे कि स्त्रियों के पेट में बात नहीं पचती। यह किसी-न-किसी से अवश्य ही कह देगी और बात फैल जाएगी। जब जाह्नवी के स्नेह व्यवहार से वह प्रसन्न होते तो उन्हें उससे सुमन की कथा कहने की बड़ी तीव्र आकांक्षा होती हृदय सागर में तरंगें उठने लगतीं, लेकिन परिणाम को सोचकर रूक जाते थे। आज कृष्णचन्द्र की कृतघ्नता और जाह्नवी की स्नेहपूर्ण बातों ने उमानाथ को निःशंक कर दिया, पेट में बात रुक सकी। जैसे किसी नाली में रुकी हुई वस्तु भीतर से पानी का बहाव पाकर बाहर निकल पड़े उन्होंने जाह्नवी से सारी कथा बयान कर दी। (ख). मैं नहीं चाहता कि वे लोभ के वश अपने बाल-बच्चों को छोड़कर कम्पनी की छावनियों में जाकर रहें और अपना आचरण भ्रष्ट करें। अपने गाँव में उनकी एक विशेष स्थिति होती है। उनमें आत्म-प्रतिष्ठा का भाव जाग्रत रहता है। बिरादरी का भय उन्हें कुमार्ग से बचाता है। कम्पनी की शरण में जाकर वह अपने घर के स्वामी नहीं, दूसरे के गुलाम हो जाते हैं और बिरादरी में बन्धनों से मुक्त होकर नाना प्रकार की बुराइयाँ करने लगते हैं। कम-से-कम मैं अपने किसानों को इस परीक्षा में नहीं डालना चाहता । (ग) सूरदास कहाँ तो नैराश्य ग्लानि चिंता और क्षोभ के अपार जल में गोते खा रहा था कहाँ यह चेतावनी सुनते ही उसे ऐसा मालूम हुआ, किसी ने उसका हाथ पकड़कर किनारे पर खड़ा कर दिया। वाह! मैं तो खेल में रोता हूँ। कितनी बुरी बात है लड़के भी खेल में रोना बुरा समझते हैं रोने वाले को चिढ़ाते हैं, और मैं खेल में रोता हूँ। सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं, बाजी पर बाजी हारते हैं, चोट पर चोट खाते हैं, धक्के पर धक्के सहते हैं; पर मैदान में डटे रहते हैं, उनकी त्यौरियों पर बल नहीं पड़ते। हिम्मत उनका साथ नहीं छोड़ती, दिल पर मालिन्य के छींटे भी नहीं आते, न किसी से जलते हैं, न चिढ़ते हैं। खेल में रोना कैसा ? खेल हँसने के लिए दिल बहलाने के लिए है, रोने के लिए नहीं । (घ) यह कहते-कहते रतन की आंखें सजल हो गई। जालपा अपने को दुःखिनी समझ रही थी और दुखी जनों को निर्मम सत्य कहने की स्वाधीनता होती है। लेकिन रतन की मनोव्यथा उसकी व्यथा से कहीं विदारक थी। जालपा के पति के लौट आने की अब भी आशा थी। वह जवान है, उसके आते ही जालपा को ये बुरे दिन भूल जाएंगे। उसकी आशाओं का सूर्य फिर उदय होगा। उसकी इच्छाएं फिर फूले- जलेंगी। भविष्य अपनी सारी आशाओं और आकांक्षाओं के साथ उसके सामने था - विशाल, उज्ज्वल, रमणीक । रतन का भविष्य क्या था? कुछ नहीं, शून्य, अंधकार ! 2. 'प्रेमचंद' की जीवन दृष्टि पर प्रकाश डालिए । 3. 'सेवासदन' के औपन्यासिक शिल्प का विवेचन कीजिए। 4. 'रंगभूमि' उपन्यास के आधार पर सूरदास की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए । 5. 'गबन' के रचनात्मक उद्देश्य पर प्रकाश डालिए । 6. निम्नलिखित विषयों पर टिप्पणी लिखिए: (क) प्रेमचंद के कहानी संबंधी विचार (ख) प्रेमचंद की जीवन दृष्टि (ग) गबन की भाषा (घ) विनय और सेवा समिति
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