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This particular Assignment references the syllabus chosen for the subject of Hindi, for the July 2023 - January 2024 session. The code for the assignment is BHDC-109 and it is often used by students who are enrolled in the BA (Honours), BAHDH Degree.
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भाग-क
निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
(क) वही बातें, जिन्हें किसी युवक के मुख से सुनकर उसका हृदय प्रेम से उन्मत्त हो जाता, वकील साहब के मुँह से निकलकर उसके हृदय पर शर के समान आघात करती थी। उनमें रस न था, उल्लास न था, उन्माद न था, हृदय न था, केवल बनावट थी, धोखा था, और था शुष्क, नीरस शब्दाडम्बर। उसे इत्र और तेल बुरा न लगता, सैर-तमाशे बुरे न लगते, बनाव- सिंगार भी बुरा न लगता था, बुरा लगता था, तो केवल तोताराम के पास बैठना। उन्हें इन रसों का आस्वादन लेने योग्य ही न समझती थी कली प्रभात समीर ही के स्पर्श से खिलती है। दोनों के समान सारस्य है। निर्मला के लिए वह प्रभात समीर कहाँ था ?
(ख) नियति का लेख बँधा है। एक भी अक्षर उसका यहाँ से वहाँ न हो सकेगा। वह बदलता नहीं, बदलेगा नहीं। पर विधि का वह अतर्क्य लेख किस विधाता ने बनाया है, उसका उसमें क्या प्रयोजन है- यह भी कभी पूछकर जानने की इच्छा की जा सकती है, या नहीं। शायद नहीं। ज्ञानी जन कह गये हैं कि परम कल्याणमय ही इस सृष्टि में अपनी परम लीला का विस्तार कर रहा है। मैं मान लेता हूँ कि ऐसा ही है। न मानूँ तो जीऊँ कैसे ? पर रह-रहकर जी होता है कि पुकार कर कहूँ कि हे ! परम कल्याणमय, तेरी कल्याणी लीला को मैं नहीं जानता हूँ।
(ग) मन अब भी सब कुछ वही चाहता है, किंतु ज्ञान यथार्थ-बोध कराता है। जो मनुष्य बनकर जन्मता है उसके मन को यह हक है कि वह असंभव से असंभव वस्तु की चाहना भी कर ले, पर उसे पाने की शक्ति और औचित्य के बिना क्या वह हक यथार्थ है? अपनी परिस्थितियों पर विचार न करनेवाला व्यक्ति मूर्ख होता है। तुलसीदास इस समय मन के दर्द में ज्ञान की गूंज से बचना चाहते थे। इससे तो अच्छा था कि मन राम में रमता पर अभी राम लौटकर नहीं आते ओर मोहिनी छूटकर भी नहीं छूटती ।
(घ) दस वर्ष का यह विवाहित जीवन एक अंधेरी सुरंग में चलते चले जाने की अनुभूति से भिन्न न था । आज जैसे एकाएक वह उसके अंतिम छोर पर आ गई है। पर आ पहुंचने का संतोष भी तो नहीं है, ढकेल दिए जाने की विवश कचोट भर है। पर कैसा है यह छोर ? न प्रकाश, न वह खुलापन, न मुक्ति का एहसास लगात है जैसे इस सुरंग ने उसे एक दूसरी सुरंग के मुहाने पर छोड़ दिया है-फिर एक और यात्रा वैसा ही अंधकार, वैसा ही अकेलापन ।
भाग-ख
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 750-800 (प्रत्येक ) शब्दों में दीजिए ।
(1). 'निर्मला' उपन्यास की शिल्पगत विशेषताएँ बताइए ।
(2). अमृतलाल नागर के उपन्यासों का परिचय दीजिए।
(3). मृगनयनी की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए ।
भाग-ग
3. निम्नलिखित पर लगभग 250 (प्रत्येक ) शब्दों में टिप्पणी लिखिए:
(1) प्रेमचंद के उपन्यासों की विशेषताएँ
(2) त्याग - पत्र' उपन्यास की अंतर्वस्तु
(3) 'आपका बंटी की संवाद-योजना
भाग-क
1. निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
(क) निर्मला ज्योंही द्वार पर पहुँची उसने सुधा को तांगे से उतरते देखा सुधा उसे देखते ही जल्दी से उतरकर उसकी ओर लपकी और कुछ पूछना चाहती थी, नगर निर्मला ने उसे अवसर न दिया तीर की तरह झपटकर चली सुधा एक क्षण तक विस्मय की दशा में खड़ी रही बात क्या है, उसकी समझ में कुछ न आ सका वह व्यग्र हो उठी जल्दी से अन्दर गई महरी से पूछने कि क्या बात हुई है वह अपराधी का पता लगायेगी और अगर उसे मालूम हुआ कि महरी या और किसी नौकर ने उसे कोई अपमान सूचक बात कह दी है तो वह उसे खड़े-खड़े निकाल देगी। लपकी हुई वह अपने कमरे में गई अन्दर कदम रखते ही डॉक्टर साहब को मुँह लटकाये चारपाई पर बैठा देखा।
(ख) मुझे वहाँ थोड़ी देर खड़ा रहना भी असहय हो गया मुझसे कुछ भी नहीं बोला गया। बुआ के गले से लगकर मैं वहाँ थोड़ा रो लेता तो ठीक होता पर वह संभव न हुआ मैं दबे पाँव लौट आया। वह दिन था कि फिर बुआ की हँसी मैंने नहीं देखी। इसके पाँच-छह महीने बाद बुआ का ब्याह हो गया। मैंने जल्दी जल्दी तत्परता के साथ सब व्यवस्था कर दी बुआ का उसी दिन से पढ़ना छूट गया था। वह उस दिन से सीने पिरोने, झाडने बुहारने और इसी तरह के और कामों में शांत भाव से लगी रहती थीं काम करते रहने के अतिरिक्त उन्हें और किसी बात से मतलब न था।
(ग) देखी यह विडम्बना कि एक ओर राम भक्ति पाने के लिए मन तड़पता है और दूसरी ओर पण्डितों से संस्कृत कवि के रूप में वाहवाही पाने की छटपटाहट भी है। एक ओर दुनिया से विराग भी है और दूसरी ओर यह वाहवाही का लोभ भी इसी द्वंद्व से मेरी सच्ची चाहना को निकालने हेतु नियति ने मानो मेरे लिए काशी में भी संघर्ष का एक वातावरण प्रस्तुत कर दिया।
(घ) मेरी कविता नहीं. तुम्हारी कविता और कारीगरी के ध्यान की कविता मेरे शब्द कारीगरों को जो सूझ नहीं दे के उसकी तुम्हारे दिये हुए मेरे भाव ने उसको दिया। कारीगरों ने योग साधा. उनके ध्यान में वह भाव मूर्त हुआ और टॉकी हथौड़े ने तुम्हारी कविता और मेरे भाव को पत्थरों में उतार कर बसा दिया।
भाग-ख
2. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 750-800 (प्रत्येक ) शब्दों में दीजिए ।
(1) निर्मला के चरित्र की विशेषताएँ बताइए।
(2). जैनेन्द्र के उपन्यासों का परिचय दीजिए।
(3). 'आपका बंटी की शैलीगत विशेषताएँ बताइए।
भाग-ग
3. निम्नलिखित पर लगभग 250 (प्रत्येक ) शब्दों में टिप्पणी लिखिए:
(1) मुंशी तोताराम का चरित्र
(2) मृगनयनी की भाषा
(3) 'आपका बंटी' का परिवेश
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