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IGNOU BHDC-133 - Aadhunik Hindi Kavita

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Rating: 3.5

आधुनिक हिंदी कविता

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IGNOU BHDC-133 Code Details

  • University IGNOU (Indira Gandhi National Open University)
  • Title आधुनिक हिंदी कविता
  • Language(s)
  • Code BHDC-133
  • Subject Hindi
  • Degree(s) BAG
  • Course Core Courses (CC)

IGNOU BHDC-133 Hindi Topics Covered

Block 1 - भारतेन्दु युग एवं द्विवेदी युग

  • Unit 1 - भारतेन्दु युगीन कविता: स्वरूप और विकास
  • Unit 2 - भारतेन्दु और उनकी कविता
  • Unit 3 - द्विवेदी युगीन हिन्दी काव्य: स्वरूप और विकास
  • Unit 4 - अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध‘ और उनकी कविता
  • Unit 5 - मैथिलीशरण गुप्त और उनकी कविता
  • Unit 6 - रामनरेश त्रिपाठी आरै उनकी कविता

Block 2 - छायावाद

  • Unit 1 - छायावादः स्वरूप और विकास
  • Unit 2 - जयशंकर प्रसाद और उनकी कविता
  • Unit 3 - सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला‘ और उनकी कविता
  • Unit 4 - सुमित्रानंदन पंत और उनकी कविता
  • Unit 5 - महादेवी वर्मा और उनकी कविता

Block 3 - काव्य वाचन और विश्लेषण

  • Unit 1 - काव्य वाचन और विश्लेषण: भारतेन्दु हरिश्चद्रं और अयोध्यासिहं उपाध्याय ‘हरिऔध’
  • Unit 2 - काव्य वाचन और विश्लेषण: मैथिलीशरण गुप्त, रामनरेश त्रिपाठी
  • Unit 3 - काव्य वाचन एवं विश्लेषण: जयशंकर प्रसाद
  • Unit 4 - काव्य वाचन एवं विश्लेषण: सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’
  • Unit 5 - काव्य वाचन एवं विश्लेषण: सुमित्रानंदन पंत
  • Unit 6 - काव्य वाचन एवं विश्लेषण: महादेवी वर्मा
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IGNOU BHDC-133 (July 2023 - January 2024) Assignment Questions

खंड - क निम्नलिखित पद्यांशों की ससंदर्भ व्याख्या कीजिये 1. प्रेम में मीन मेष कछू नाहिं । अति ही सरल पंथ यह सूधो छल नहिं जाके माही । हिंसा द्वैष इरखा मत्सर मद स्वास्थ की बातै। कबहूँ याके निकट न आवै छल प्रपंच की धातै । सहज सुभाविक रहनि प्रेम की प्रीतम सुख सुखकारी। अपुनो कोटि कोटि सुख पिय के तिनकहि पर बलिहारी । जहँ ने ज्ञान अभिमान नेम व्रत विशय वासना आवै । रीझ खीज दोऊ पीतम की मन आनंद बढ़ावै । परमारथ स्वास्थ दोऊ पीतम और जगत नहिं जाने। हरिश्चंद यह प्रेम रीति कोउ विरले ही पहिचाने। 2. स्वयं सुसज्जित करके क्षण में, प्रियतम को प्राणों के पण में, हमीं भेज देती हैं रण में- क्षात्र धर्म के नाते । सखि, वे मुझसे कह कर जाते। हुआ न यह भी भाग्य अभागा किस पर विफल गर्व अब जागा? जिसने अपनाया था, त्यागा, रहे स्मरण ही आते । सखि, वे मुझसे कह कर जाते । 3. संध्या सुन्दरी दिवसावसान का समय मेघमय आसमान से उतर रही है वह सन्ध्या-सुन्दरी परी सी धीरे धीरे धीरे तिमिराञ्चल में चञ्चलता का नहीं कहीं आभास, मधुर मधुर हैं दोनों उसके अधर, किन्तु गम्भीर नहीं है उनमें हास - विलास । हंसता है तो केवल तारा एक गुँथा हुआ उन घुँघराले काले बालों से, हृदय-राज्य की रानी का वह करता है अभिषेक । 4. मैं क्षितिज भृकुटि पर घिर धूमिल, चिंता का भार बनी अविरल, रज- कण पर जल-कण हो बरसी नवजीवन - अंकुर बन निकली ! पथ को न मलिन करता आना, पद-चिह्न न दे जाता जाना, सुधि मेरे आगम की जग में सुख की सिहरन हो अंत खिली विस्तृत नभ का कोई कोना, मेरा न कभी अपना होना, परिचय इतना इतिहास यही उमड़ी कल थी मिट आज चली ! खंड - ख निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए: 5. भारतेंदु युगीन काव्य की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए । 6. हरिऔध के साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियों को रेखांकित कीजिए। 7. रामनरेश त्रिपाठी के रचना संसार पर प्रकाश डालिए । 8. महादेवी वर्मा की कविता के अंतर्वस्तु की चर्चा कीजिए। खंड - ग निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए: 9. भारतेंदु के छंद विधान पर प्रकाश डालिए। 10. जयशंकर प्रसाद की राष्ट्रीय चेतना को स्पष्ट कीजिए। 11. संध्या सुंदरी' कविता का अभिप्राय स्पष्ट कीजिए । 12. मौन निमंत्रण' कविता का विश्लेषण करते हुए उसके मंतव्य को स्पष्ट कीजिए ।

IGNOU BHDC-133 (July 2022 - January 2023) Assignment Questions

खंड - क निम्नलिखित पद्यांशों की ससंवर्भ व्याख्या कीजिये : 1. नैना वह छवि नाहिन भूलै । दया भरी चहुँ दिसि की चितवनि नैन कमल दल फूले । वह आवनि वह हंसनि छबीली वह मुस्कनि चित चोरै। वह बतरानि मुरलि हरि की यह देखन चहूँ कोरे। वह धीरी गति कमल फिरावन कर लै गायन पाछै। वह बीरी मुख येनु बजावति पीत पिछौरी काछे। पर बस भए फिरत है नैना एक छन टरत न टारे। "हरीचंद" ऐसी छवि निरखत तन मन धन सब हारे। 2. औरों के हाथों नहीं यहां पलती हूँ अपने पैरों पर खड़ी आप चलती हूँ अमवारि बिन्दु फल स्वास्थ्य मुक्ति फलती हूँ अपने अंचल से व्यजन आप झलती हूँ तनु-लता-सफलता- स्वादु आज ही लाया। मेरी कुटिया में राज-भवन मन भाया। 3. पंथ होने दो अपरिचित पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला! घेर ले छाया अमा बन, आज कज्जल-अश्रुओं में रिमझिम ले यह घिरा घन, और होंगे नयन सूखे. तिल बुझे औ पलक रूखे, आर्द्र चितवन में यहाँ शत विद्युतों में दीप खेला! अन्य होंगे चरण हारे, और हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे, दुखव्रती निर्माण उन्मद, यह अमरता नापते पद, बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला! 4. स्तब्ध ज्योत्स्ना में जब संसार चकित रहता शिशु-सा नादान, विश्व के पलकों पर सुकुमार विचरते हैं जब स्वप्न अजान, न जाने, नक्षत्रों से कौन निमंत्रण देता मुझको मौन । सघन मेघों का भीमाकाश गरजता है जब तमसाकार, दीर्घ भरता समीर निःश्वास, प्रखर झरती जब पावस धार, न जाने, तमक तड़ित में कौन मुझे इंगित करता तब मौन। देख वसुधा का यौवन भार गूंज उठता है जब मधुमास, विधुर उर के-से मृदु उद्गार। खंड -ख निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 500 शब्दों में दीजिए : 5. भारतेंदु युगीन कविता की नवीन प्रवृतियों को रेखांकित करते हुए उस युग के प्रमुख कवियों का परिचय भी दीजिए। 6. द्ववेदी युगीन काव्य के अभिव्यंजना शिल्प को रेखांकित कीजिए। 7. छायावाद की पृष्ठभूमि को स्पष्ट करते हुए उसके प्रारंभ की चर्चा कीजिए। 8. निराला काव्य की अर्न्तवस्तु को स्पष्ट कीजिए। खंड -ग निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 200 शब्दों में दीजिए : 9. छायावाद के प्रमुख कवियों के कृतित्व का परिचय दीजिए। 10. मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में अभिव्यक्त राष्ट्रीय भावना पर प्रकाश डालिए। 11. पंत के काव्य शिल्प की संक्षिप्त चर्चा कीजिए। 12. महादेवी वर्मा की बिंब योजना पर प्रकाश डालिए।
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